Friday, December 24, 2010

कुछ दिनों से मै समुन्दर के साथ हूँ.... दूर - दूर तक सिर्फ पानी ही पानी .... बीते  , दिन से ही वो गुस्से मै है .... उसके कई रूप देखे है मैंने इन दिनों .... रात भर मै उसकी गुस्से भरी आवाज़ सुनती रही .... अभी भी वो गुस्साया हुआ है .... न जाने क्यों ???????     दूर दूर तक लहरों का जमघट है .... जो वापिस जाती है लहरे,.... किनारे से टकरा के.... ,चंद फ़ासले पे इंतज़ार करती दूसरी लहरों से मिल फिर से वापिस आती है ,पूरे वेग  के साथ .... लगता है आज किनारे का दंभ चूर -चूर करके ही दम लेंगी ..... .....

कुछ दिनों पहले,  इन्ही लहरों को प्यार से अठ्खैलियाँ करते देखा था ...किनारे  के साथ .... लगता था जैसे अपने प्रियतम  ! को रिझा रही थी ... प्रियतम को अपने पास आने का निमंत्रण दे रही थी ...... समुन्दर का रंग साफ़ था .. सूरज  की किरणे भी लहरों के साथ खिलवाड़ कर रही थी .... मंद ,मंद बयार चल रही थी ......

लगता है किनारे का अहम् ..... समुन्दर को आहत कर गया .... सारा का सारा मौसम बदल गया .... समुन्दर का नीला रंग अब कुछ काला सा दिखने लगा है .. उसके   गुस्से  से डर ... सूरज भी बादलों के आँचल मै छुप गया ...हवा भी ..... सहम के तेज़ चलने लगी .. अचानक !... सब कुछ पल मै , बदल गया ......

ये शहर !..... अपनी ही धुन मै है ... chirstmas है आज .... सब अपने मै ही व्यस्त है .. किसको फुर्सत है की वो समुन्दर की आवाज़ सुने .....उसका दर्द महसूस करे ......

 और  मै ??? 
  

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