जाने कौन था वो ? जाने किसने दी सदा ? ...
दूर -दूर तक ख़ामोशी बिखरी पड़ी थी .....
शायद .......मैं ही थी.....! वो !!
खुद को आवाज़ दे .... ख़ामोशी तोड़ रही थी ...
ख़ामोशी की एक जबान होती है !
हर सन्नाटा कुछ शोर करता है !
सुना करते थे हम
आज महसूस करते है ....
बाहर बहुत शोर है
अन्दर ख़ामोशी पसरी पड़ी है
खिड़की से झांकता चाँद...
न जाने कितनी बाते करता है मुझसे ....
हर लहर कहानी सुना जाती है मुझको
छत की मुंडेर पे बैठे परिंदे
अभिवादन करते है मेरा ..
मुझसे सुबह का सूरज अलसाया सा मिलता है
मंद मंद चलने वाली बयार ..
प्रियतम की तरह मिलती है मुझसे ...
फिर भी ख़ामोशी ......
तपती जेठ की दुपहरी सी खामोश ..
दूर -दूर तक ख़ामोशी बिखरी पड़ी थी .....
शायद .......मैं ही थी.....! वो !!
खुद को आवाज़ दे .... ख़ामोशी तोड़ रही थी ...
ख़ामोशी की एक जबान होती है !
हर सन्नाटा कुछ शोर करता है !
सुना करते थे हम
आज महसूस करते है ....
बाहर बहुत शोर है
अन्दर ख़ामोशी पसरी पड़ी है
खिड़की से झांकता चाँद...
न जाने कितनी बाते करता है मुझसे ....
हर लहर कहानी सुना जाती है मुझको
छत की मुंडेर पे बैठे परिंदे
अभिवादन करते है मेरा ..
मुझसे सुबह का सूरज अलसाया सा मिलता है
मंद मंद चलने वाली बयार ..
प्रियतम की तरह मिलती है मुझसे ...
फिर भी ख़ामोशी ......
तपती जेठ की दुपहरी सी खामोश ..