Saturday, March 1, 2014

सर्द सी एक रात

सर्द रातों कि ख़ामोशी  में
रात  के दूसरे -तीसरे पहर
सर्द बिस्तर की चादर पे
एक दूसरे से लिपट
रिश्ते कि गर्माहट
ढूंढते हुऐ ज़िस्म।  

कभी उलझे रिश्तों को
सुलझाने कि कश्म कश में
गर्म लिहाफ में ,
 दम तोड़ते  ज़िस्म।

कभी जिंदगी का ताना  बाना बुनते
गर्म अलाव के पास
क्या खोया , क्या पाया
सिर  धुनते ज़िस्म।

कभी मय के प्याले में
 खुशियां ढ़ूढ़ते ,कह- कहे
खोखली हंसी हँसते  ,मुखोटे चढ़ाए
थके थके से ज़िस्म।

कल मौसम बदल जाएगा।