Monday, February 24, 2014

ज़िंदगी


दरख्तों के शाखों पे
लटकी सी ज़िंदगी

अनजान से रिश्तों का
बोझ ढोती  ज़िंदगी।

चाय ,कॉफी के प्यालों में
ताज़गी ढूढ़ती  ज़िंदगी

मुखोटों के पीछे
भागती ज़िंदगी
मुखोटों के पीछे
 छुपती ज़िंदगी

कभी मय  के प्याले
सी कड़वी ज़िंदगी
रेत के समुन्दर सी
प्यासी ज़िंदगी
ऊफ्फ ये सड़कों पे दौड़ती
भागती ज़िंदगी

मेरे महबूब !!!
सब कुछ भुला
तेरी बाहों में , पनाहों में
खुद को समेटती सी ज़िंदगी

हर पल कतरा  कतरा
सांस लेतीं सी ज़िंदगी
उलझे धागों सी उलझी
ये ज़िंदगी
हर रात बिस्तर पे
दम तोड़ती ये ज़िंदगी।




Sunday, February 23, 2014

बस एक ख्याल …। 

जाने क्यों ये ख्याल,
मेरे सपनों कि मुंडेर पे आके बैठ जाते है 
सारा दिन कबूतर के मानिंद 
गुटर गूं गुटर गूं
तेरे साथ बीता… 
  वो, …… 
 हर एक पल !

मेरी साँसों में समां  गया  , 
तेरी  साँसों कि तरह !!!!

तेरी यादों का धुवाँ 
जज़्ब हो गया 
मेरे  ज़िस्म में .......
 जलते लोबान कि खुशबू कि तरह 

तेरी हथेलियों कि गर्माहट ,…
मेरी  रूह को !

दे गयी तपिश,,… 
क़तरा क़तरा  सुलगने के लिए !!!

प्रियतम मेरे 
तू छोड़ गया मुझे  !
  अकेला ,....... 
तेरे ही,
 ख्यालों को सजाने के लिए  !!!!!!