Saturday, February 5, 2011

धुंध ही .............धुंध !
चारों तरफ़ फैली ये धुंध ...!!
 जिस तरफ़ भी नज़र दौराऊँ
हर तरफ़ धुंध ही धुंध !!!!

कितनी समानता है 
मेरे आज ..और इसमे  !
मेरे जीवन मे भी....
 फैली हुई है धुंध ही धुंध !!!!!  

जाना है मुझको जिस राह
वो नज़र आती नहीं ....
खरी हूँ चौराहे पे  !
जाना है किस राह ...?????
समझ पाती नहीं !!!!!!

जानती हूँ इतना  .....
 उस पार .....
 प्रियतम है मेरा !

एक आस है .. विश्वाश है ...
ये धुंध !!!!....कभी तो हटेगी 
सूरज की रौशनी मे.....
मैं  नहाई...!  प्रियतम से मिलूंगी ....

एक छोटी सी खवाहिश है मेरी ...
जब प्रियतम से ....
मिलन हो मेरा ...
 तू फिर से छा  जाना ....
ताकि .....
कोई देख न सके ...
उस मिलन को ...!!!

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