Monday, February 24, 2014

ज़िंदगी


दरख्तों के शाखों पे
लटकी सी ज़िंदगी

अनजान से रिश्तों का
बोझ ढोती  ज़िंदगी।

चाय ,कॉफी के प्यालों में
ताज़गी ढूढ़ती  ज़िंदगी

मुखोटों के पीछे
भागती ज़िंदगी
मुखोटों के पीछे
 छुपती ज़िंदगी

कभी मय  के प्याले
सी कड़वी ज़िंदगी
रेत के समुन्दर सी
प्यासी ज़िंदगी
ऊफ्फ ये सड़कों पे दौड़ती
भागती ज़िंदगी

मेरे महबूब !!!
सब कुछ भुला
तेरी बाहों में , पनाहों में
खुद को समेटती सी ज़िंदगी

हर पल कतरा  कतरा
सांस लेतीं सी ज़िंदगी
उलझे धागों सी उलझी
ये ज़िंदगी
हर रात बिस्तर पे
दम तोड़ती ये ज़िंदगी।




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