सर्दियों कि सुबह
चारों और कोहरे कि चादर ,
लिहाफ़ में लिपटे हुऐ तन को और जोर से कस लिया। .... आँखों को और जोर से मींच लिया। पर दिमाग का क्या करूँ ? उसे न ठण्ड लगती है ना ही आलस आता है ,,,जैसे ही मौका मिला वो तो चल देता है जाने कहाँ कहाँ। ....जब से उस से मिल के आयी एक अजीब सी उलझन मैं फंस गयी। ....
एक गुस्सा भरा है मन मैं। .... कितने मुश्किल से मैंने वो पल निकाले तब जाके उस से मिल पायी और वो अपने काम मैं मशगूल। . मेरे लिए उसके पास टाइम ही नहीं और मैं पागल सी उसके लिए पागल। ।कितनी बातें करनी थी मुझको , कितनी बातें बतानी थी पर। ....
दिमाग चल पड़ा तो नींद कैसे आये ???
शाल को कस के लपेट कमरे का दरवाज़ा खोल बरामदे मैं आयी। … चारों और कोहरा , साथ वाला घर भी नज़र नहीं आ रहा कोहरे मैं लिपटी दुनिया और मेरे अंदर का कोहरा भी तो इतना ही घना , कुछ भी तो समझ नहीं आता कि क्या करूं। अख़बार और चाय के साथ थोरी देर के लिए मैं उसे भूल गयी पर वो तो मेरे भीतर नागफनी कि तरह उग आया था। जितना उस से दूर जाने कि सोचती वो मेरे दामन को खींच लेता। ।ओर मैं खींचती चली जाती। .
उसका ख्याल आते ही मेरे चेहरे पे मुस्कान आ जाया करती थी। उसकी नज़रें मुझे अपने चेहरे पे नज़र आती थीं। . वो जब कहता था फ़ोन पे कि उसे मेरी आवाज़ घंटियों जैसी लगती है और वो बार बार सुनना चाहता है। तब मेरा दिल जोर से धड़कने लगता था। मेरे हाथ काम कर रहे होते मगर दिमाग उस मैं ही उलझ रहता। उसकी कही बातें भूल ही नहीं पाती और मुस्कुराती रहती। हर शय खूबसूरत लगती। उसके साथ कुछ पल बिताने कि चाहत बढ़ती जाती। सोचती कैसे वो वक़्त गुजरेगा।
कितने सपने , कितनी चाहतें उसके साथ।
ये सपना सपना ही रह गया। . हम नहीं मिले ,उसका काम उसकी कमिटमेंट्स काम के साथ बस। उसकी दुनिया वहीँ तक सिमट के रह गयी। और मैं आज़ाद परिंदों सी उड़ान भरने वाली बेबस। वो न पास आया न दूर ही गया। वक़्त गुजरता चला गया। मौसम आये गए। .
और कल जब मैं हिम्मत कर मिली उस से। .......
फिर वही सवाल मुह बाये खड़ा है क्या करूं ?? इस दुविधा का अंत तो करना ही है ना। उसका फ़ोटो सामने है मेरे उसे देखती रही उसकी आँखों मैं खुद को ढूढ़ती रही फिर धीरे धीरे उसके चेहरे पे मेरी उँगलियाँ फिरती रहीं लगा उसे छू लिया। और फिर फ़ोन पे एक मेसेज लिखा। '. गुड बाय। गॉड ब्लैस यू।' और सेंड कर दिया हमेशा के लिए।
चारों और कोहरे कि चादर ,
लिहाफ़ में लिपटे हुऐ तन को और जोर से कस लिया। .... आँखों को और जोर से मींच लिया। पर दिमाग का क्या करूँ ? उसे न ठण्ड लगती है ना ही आलस आता है ,,,जैसे ही मौका मिला वो तो चल देता है जाने कहाँ कहाँ। ....जब से उस से मिल के आयी एक अजीब सी उलझन मैं फंस गयी। ....
एक गुस्सा भरा है मन मैं। .... कितने मुश्किल से मैंने वो पल निकाले तब जाके उस से मिल पायी और वो अपने काम मैं मशगूल। . मेरे लिए उसके पास टाइम ही नहीं और मैं पागल सी उसके लिए पागल। ।कितनी बातें करनी थी मुझको , कितनी बातें बतानी थी पर। ....
दिमाग चल पड़ा तो नींद कैसे आये ???
शाल को कस के लपेट कमरे का दरवाज़ा खोल बरामदे मैं आयी। … चारों और कोहरा , साथ वाला घर भी नज़र नहीं आ रहा कोहरे मैं लिपटी दुनिया और मेरे अंदर का कोहरा भी तो इतना ही घना , कुछ भी तो समझ नहीं आता कि क्या करूं। अख़बार और चाय के साथ थोरी देर के लिए मैं उसे भूल गयी पर वो तो मेरे भीतर नागफनी कि तरह उग आया था। जितना उस से दूर जाने कि सोचती वो मेरे दामन को खींच लेता। ।ओर मैं खींचती चली जाती। .
उसका ख्याल आते ही मेरे चेहरे पे मुस्कान आ जाया करती थी। उसकी नज़रें मुझे अपने चेहरे पे नज़र आती थीं। . वो जब कहता था फ़ोन पे कि उसे मेरी आवाज़ घंटियों जैसी लगती है और वो बार बार सुनना चाहता है। तब मेरा दिल जोर से धड़कने लगता था। मेरे हाथ काम कर रहे होते मगर दिमाग उस मैं ही उलझ रहता। उसकी कही बातें भूल ही नहीं पाती और मुस्कुराती रहती। हर शय खूबसूरत लगती। उसके साथ कुछ पल बिताने कि चाहत बढ़ती जाती। सोचती कैसे वो वक़्त गुजरेगा।
कितने सपने , कितनी चाहतें उसके साथ।
ये सपना सपना ही रह गया। . हम नहीं मिले ,उसका काम उसकी कमिटमेंट्स काम के साथ बस। उसकी दुनिया वहीँ तक सिमट के रह गयी। और मैं आज़ाद परिंदों सी उड़ान भरने वाली बेबस। वो न पास आया न दूर ही गया। वक़्त गुजरता चला गया। मौसम आये गए। .
और कल जब मैं हिम्मत कर मिली उस से। .......
फिर वही सवाल मुह बाये खड़ा है क्या करूं ?? इस दुविधा का अंत तो करना ही है ना। उसका फ़ोटो सामने है मेरे उसे देखती रही उसकी आँखों मैं खुद को ढूढ़ती रही फिर धीरे धीरे उसके चेहरे पे मेरी उँगलियाँ फिरती रहीं लगा उसे छू लिया। और फिर फ़ोन पे एक मेसेज लिखा। '. गुड बाय। गॉड ब्लैस यू।' और सेंड कर दिया हमेशा के लिए।
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