मेरी यांदों कि संदूकड़ी में कुछ और पल संजो के रखे मैंने। … आज खोला तो कुछ पन्ने सामने खुल गए उस से जुड़े हुऐ। उम्र के उस मोड़ पे जब नए ख्वाब नही देखे जाते। ।एक दिन अचानक एक मैसेज मिला मेल पे.…। उत्तर नहीं दिया तो फिर से वही मेसज। जाने क्या था उन शब्दों में। … और फिर एक अनजाने नंबर से फ़ोन आया। और वो नंबर जाना पहचाना हो गया। । वो आवाज़ जानी पहचानी हो गयी। कुछ था हमारे बीच एक आकर्षण। …
एक दिन उसने कहा मिलोगी मुझसे ? और मैंने कहा क्यों नहीं !!!!!
जाने कितनी बार खुद को आईने में देखा। शायद कई सालों से खुद को इस तरह नहीं देखा था। ओह कितनी कमियां नज़र आयीं खुद मैं . नियत वक़्त पे मैं धड़कते दिल के साथ एअरपोर्ट पंहुची। न उसने मुझे देखा था न मैंने उसे …फोन की घंटी के साथ मेरे दिल कि धड़कन बढ़ गयी और हम दोनों आमने सामने। खुद को काबू किया ज़ाने क्यों एक अंजना सा डर मुझे घेरने लगा। किसी तरह काबू किया किया खुद पे , खुद के डर पे और हम अनजान से पहचाने हो गए। एक कहानी कि शुरुआत हो गयी .और वो पल मेरी संदूकड़ी में
मौसम बदलते रहे और एक दिन,. फिर वही सवाल , मिलोगी मुझसे ? क्यों नहीं जबाब मेरा !!!
हम एक दूसरे के सामने। कितनी बातें कुछ कही कुछ अनकही ,कुछ सुनी कुछ अनसुनी ,कुछ समझा फिर भी बहुत कुछ रह गया समझने को ,बहुत कुछ जाना फिर भी बहुत कुछ रह गया जान ने को . हम थे और हमारे बीच वाइन के ग्लास और कुछ स्नैक्स। …वाइन ने कुछ कुछ पिघलाना शुरू किया जमी हुई चुप्पी को ! और वक़्त एक और कहानी लिख गया। …ओर मेरी संदूकड़ी में सहेज़ के रखी मेरी यादों कि जमा पूँजी में एक और पल जुड़ गया ।
वक़्त गुज़रता रहा। अपने अपने हिस्से का सफ़र हम तय करते रहे. जाने उसके हिस्से मैं क्या था मुझे नहीं मालूम। … मेरे हिस्से का उसे नहीं मालूम। ।कोई गिला नहीं कोई शिकवा नहीं। .
मिलोगी मुझसे ? उसने पूछा मुझसे और मैंने उसी लहज़े मैं कहा क्यों नहीं ???
और फिर मैंने उस सर्द रात मैं उस से मिलने का मन बनाया ,,,सर्दियों कि वो सुन सान रात और हम और हमारे बीच बहुत कुछ अनकहा। उसकी बाहों के घेरे मैं पिघलती मैं। मेज पे रखे दो गिलास और व्हिस्की कि बोतल, कुछ नमकीन ……। दूर कुछ खिड़कियों से छन छन के आती रौशनी। ....... आसमान पे बादलों से खिलवाड़ करता चाँद। ।चारों ओर फैला सन्नाटा !! उसकी गर्म साँसों कि आवाज़ और मेरे दिल कि धड़कने कि आवाज़। .... और वक़्त ने एक और पन्ना रंग दिया मेरी यादों का। ।
मेरा इंतज़ार करता वो अकेले रेस्त्रा में.………… उसके सामने रखा व्हिस्की का गिलास सब कुछ कितना रूमानी लग रहा था। । मैं रात को अकेले उस से मिलने जा रही थी। …उसके साथ वक़्त से कुछ रंगीन रूमानी पल छीन लेना चाहती थी। वो मेरा नहीं ,मैं उसकी नहीं, कोई करार नहीं। कोई वादा भी नही.……मैं बोलती जा रही थी और वो मुझे सुनता जा रहा था, मेरी सारी दुनिया जैसे सिमट के उस में समां गयी … उसकी नज़र का तिलिस्सम मुझे बाँध गया। वो पल मेरे दिल पे एक कहानी लिख गया। …मेरी यादों कि संदूकड़ी में मैंने उसे भी सहेज के रख दिया। ।
इंतज़ार कुछ और यादों का !!!!
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