रात कुछ बादल गरजे और फिर लगा बादलों ने आज बरस कर जल और थल एक कर देना है ... सुबह भोर की किरण के साथ देखा
की मेरे घर के आस पास तो सूखा ही पड़ा है ....हवा का मिजाज़ बता रहा था
की कही तो ये बादल बरसे है ...कहीं तो प्यासी धरती की प्यास बुझी है .आसमाँ
बादलों से अब भी भरा हुआ था ..मौसम उमस भरा बस कभी कभी हवा का झोंका आता
और और बारिश हुई है कहीं इस का अहसास करा जाता ..उम्मीद से बाहर देखती हूँ
की जल्दी ही ये बादल आसमाँ का सीना चीर धरती को अपनी अमृत वर्षा से भिगो
देंगें और फिर धरती तृप्त हो नये जीवन के अंकुर से अंकुरित हो नये रूप मे
अवतरित होऐगी...
जाने बाहर देखते हुई मुझे लगा मै ही नहीं प्रकृति भी उन अमृत की बूंदों का बेसब्री से ही इंतज़ार कर रही हैं .... लगा जैसे सब चातक की तरह आसमाँ की तरफ टक टकी लगाये बैठे हैं प्रतीक्षा में .....चारों और एक उदासी सी छाई हुई है ..एक अजीब तरह की बैचैनी ..
दोपहर का वक़्त ....अचानक जोर जोर से बादल गरजने लगे ...बिजली की कौंध ...लगा दो दैत्य आपस मे युध्ह कर रहें हो ....ओह्ह्ह्ह आज तो बस बरस ही जायेगा ये बादल जो कब से बरसने के इंतज़ार मे बैठा है ...इतना गर्जन कि धरती ही हिल जाये ....बाहर ये तांडव चल रहा और.मैं !!!! ये सब देखती रही एक निर्विकार भाव लिए ..कभी आसमाँ पे छायें बादलों को देखती कभी बाहर यूकिलिप्टस के वृक्षों को जो बस बिना हिले डुले इंतज़ार कर रहें है उन जीवनदायनी बूदों का ....
अचानक सोंधी सोंधी मिटटी कि खुशबू पूरे सबाब के साथ उठने लगी ...मैंने उठकर देखा तो बड़ी बड़ी बूंदे धरती के आगोश में समाने लगी ....और धरती ने .... इस मिलन के आनंद में सोंधी सोंधी खुशबू बिखेर दी ...
बूँदें बरसती रहीं कभी जोर से और कभी धीरे धीरे .. मैं खिड़की पे खड़ी खड़ी बारिश का ये मन को मोहने वाला नज़ारा देखती रही..... कभी कुछ भी साफ़ नहीं दिखाई देता सिर्फ बारिश कि बूंदे ही बूँदें और धरती पे बिखरा पानी ही पानी ....सड़क अब निखरी निखरी लगने लगी ....आने जाने वाले कुछ वाहन , मेरे और प्रकृति के इस मौन को तोड़ देती कुछ पलों के लिए, पर फिर से हम दोनों के बीच एक रिश्ता कायम हो जाता ! सड़क के किनारे किनारे बहुत से वृक्ष हैं जो अब तक एक भिखारिन की तरह , बेजान, मलिन से लग रहे थे अब किसी नव योवना कि तरह मदहोशी के आलम में थे .....हर एक एक पत्ता नहाया हुआ है उस अमृत रस .... जैसे नवयोवना का एक एक अंग भीगा हुआ हो प्रेमरस में ...और मैं !!! उन दरख्तों का हुस्न देख देख निहाल होती रही ...
अब धीरे धीरे वर्षा का वेग कुछ कम हुआ .... मिलन कि वो तीव्र इच्छा... लगा जैसे भूखे कि भूख !!! अब धीरे -धीरे शांत होने लगी हो .......फिर हल्की हलकी फुहारें पड़ने लगीं और मैं खिड़की के पास बैठे बैठे उस आलम का मज़ा चाय की चुस्कियों के साथ लेने लगी .....धीरे धीरे बारिश बंद हो गयी और मैं बारिश कि बूंदों को निहारती रही ..... छत से गिरती बूंदे , वृक्षों की शाखों से गिरती बूँदें , फूलों की पंखुड़ियों पे अटकी बूँदें ....जीवनदायनी बूँदें !!!!!!
पेड़ों की शाखों पे अटकी बारिश की बूँदें ,
इंसान के जीवन की कहानी कहती बूँदें !
इन बूंदों मे दिखते सतरंगी सपने ,
इन सपनों को महकाती शबनम की बूंदे !!!
जाने बाहर देखते हुई मुझे लगा मै ही नहीं प्रकृति भी उन अमृत की बूंदों का बेसब्री से ही इंतज़ार कर रही हैं .... लगा जैसे सब चातक की तरह आसमाँ की तरफ टक टकी लगाये बैठे हैं प्रतीक्षा में .....चारों और एक उदासी सी छाई हुई है ..एक अजीब तरह की बैचैनी ..
दोपहर का वक़्त ....अचानक जोर जोर से बादल गरजने लगे ...बिजली की कौंध ...लगा दो दैत्य आपस मे युध्ह कर रहें हो ....ओह्ह्ह्ह आज तो बस बरस ही जायेगा ये बादल जो कब से बरसने के इंतज़ार मे बैठा है ...इतना गर्जन कि धरती ही हिल जाये ....बाहर ये तांडव चल रहा और.मैं !!!! ये सब देखती रही एक निर्विकार भाव लिए ..कभी आसमाँ पे छायें बादलों को देखती कभी बाहर यूकिलिप्टस के वृक्षों को जो बस बिना हिले डुले इंतज़ार कर रहें है उन जीवनदायनी बूदों का ....
अचानक सोंधी सोंधी मिटटी कि खुशबू पूरे सबाब के साथ उठने लगी ...मैंने उठकर देखा तो बड़ी बड़ी बूंदे धरती के आगोश में समाने लगी ....और धरती ने .... इस मिलन के आनंद में सोंधी सोंधी खुशबू बिखेर दी ...
बूँदें बरसती रहीं कभी जोर से और कभी धीरे धीरे .. मैं खिड़की पे खड़ी खड़ी बारिश का ये मन को मोहने वाला नज़ारा देखती रही..... कभी कुछ भी साफ़ नहीं दिखाई देता सिर्फ बारिश कि बूंदे ही बूँदें और धरती पे बिखरा पानी ही पानी ....सड़क अब निखरी निखरी लगने लगी ....आने जाने वाले कुछ वाहन , मेरे और प्रकृति के इस मौन को तोड़ देती कुछ पलों के लिए, पर फिर से हम दोनों के बीच एक रिश्ता कायम हो जाता ! सड़क के किनारे किनारे बहुत से वृक्ष हैं जो अब तक एक भिखारिन की तरह , बेजान, मलिन से लग रहे थे अब किसी नव योवना कि तरह मदहोशी के आलम में थे .....हर एक एक पत्ता नहाया हुआ है उस अमृत रस .... जैसे नवयोवना का एक एक अंग भीगा हुआ हो प्रेमरस में ...और मैं !!! उन दरख्तों का हुस्न देख देख निहाल होती रही ...
अब धीरे धीरे वर्षा का वेग कुछ कम हुआ .... मिलन कि वो तीव्र इच्छा... लगा जैसे भूखे कि भूख !!! अब धीरे -धीरे शांत होने लगी हो .......फिर हल्की हलकी फुहारें पड़ने लगीं और मैं खिड़की के पास बैठे बैठे उस आलम का मज़ा चाय की चुस्कियों के साथ लेने लगी .....धीरे धीरे बारिश बंद हो गयी और मैं बारिश कि बूंदों को निहारती रही ..... छत से गिरती बूंदे , वृक्षों की शाखों से गिरती बूँदें , फूलों की पंखुड़ियों पे अटकी बूँदें ....जीवनदायनी बूँदें !!!!!!
पेड़ों की शाखों पे अटकी बारिश की बूँदें ,
इंसान के जीवन की कहानी कहती बूँदें !
इन बूंदों मे दिखते सतरंगी सपने ,
इन सपनों को महकाती शबनम की बूंदे !!!
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