mehak
Saturday, July 16, 2011
स्याह अँधेरी रात में,
तमाम उम्र ..
.मैं जुगनुओं से
राह रोशन करती रही ...
अजनबी के इंतज़ार में
राही तो कोई नहीं गुजरा
फिर क्यों ????
अनदेखे कदमों की आहट सुनाई देती है ....
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