Saturday, September 22, 2012

कुछ सवाल नागफनी के काँटों की तरह उगते ही रहते हैं .....अगर वो सवाल नहीं होते तो शायद जिन्दगी आसान होती या मुश्किल पता नहीं .... एक सवाल का जबाब मिलता नहीं पूरी तरह तो दूसरा मुहं खोले तैयार .....सुलझाने लगती हूँ तो और उलझ जाती हूँ ...

जीने की कला ......रोकर जिन्दगी गुजारने  मै  नहीं ...बेचारगी मैं तो नहीं ...जिन्दगी को घसीटने मैं भी नहीं ....\

इंसान हो या परिस्तिथी  ,जो जैसा है उसे वैसे ही स्वीकार करो ! जिन्दगी थोड़ी आसान हो जाएगी ....इस पर भी कई सवाल उठ खड़े हुए ...

सबसे बड़ा अहम् सवाल , मै कौन हूँ ????? कितने ही उत्तर दे दिए खुद को परन्तु फिर भी लगा मैं  तो नहीं ...ये तो सिर्फ मेरी पहचान भर है ....मैं तो नहीं ...

जहाँ से शुरू हुई थी वही पे जाके ख़तम हो गयी मेरी खोज आधी अधूरी .....


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