Tuesday, March 8, 2011


कुछ तारों की बारात   चली है 
चाँद अकेला ......

बादलों के  झुरमुट के साथ 
खिलवाड़ करता हुआ .......
 खुले आसमान के नीचे ...
 मैंने ज़िंदगी के नाम .
एक जाम उठाया ...!

धीरे- धीरे रात सरक रही है ..
 न जाने कितने वाकयात  लिए ...
 न जाने कितने पल ..

और  मैं !!!

 जिन्दंगी को लपेटती रही ...
सामने  रखी शमा जलती रही 
 वो सामने बैठा, कुछ कहता रहा ....
मैं  सामने बैठी, कुछ सुनती रही .....

आज कोई कड़वाहट 
छू के नहीं गयी ...
शायद !
 जाम के साथ वो भी पी गयी 

मद्धम चांदनी मे भीगे हम दोनों 
 साथ बिताये पच्चीस सालों के नाम 
एक दूसरे का शुक्रिया अदा करते रहे .
आने वाले वर्षों मे ,
साथ रहने का सपना बुनते रहे 

जाने क्यों आज ...?  
फिर से उसने ....
मुझे क्यों चुन लिया ?

नदी के किनारे की तरह 
हम साथ-साथ  चलते रहे .
ज़िक्र था कई साल का ..
पानियों की तरह बहते रहे ..

 आज ,  कोई शिकवा नहीं रहा .
मुझे ज़िंदगी से  !
आज कोई गिला नहीं  रहा ...

रात तारों की बारात लिए .
फूलों की सौगात लिए 
अपने प्रियतम से मिलने चली 
कुछ तारों की बारात चली ....

1 comment:

  1. मद्धम चांदनी मे भीगे हम दोनों
    साथ बिताये पच्चीस सालों के नाम
    एक दूसरे का शुक्रिया अदा करते रहे .
    आने वाले वर्षों मे ,
    साथ रहने का सपना बुनते रहे

    जाने क्यों आज ...?
    फिर से उसने ....
    मुझे क्यों चुन लिया ?

    SUNDAR BHAAV ..AB ANE LAGE HO APNE ANDAAZ MAIN MITR :))

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